भारत में जब प्री-स्कूल शिक्षा केवल बड़े शहरों तक सीमित थी, तब प्रीतम कुमार अग्रवाल ने एक ऐसा सपना देखा जिसमें देश का हर बच्चा गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक शिक्षा पा सके—चाहे वह किसी महानगर में हो या गांव-कस्बे में। इसी सोच से 2005 में शुरू हुआ Hello Kids आज 1,030 से अधिक केंद्रों के साथ देशभर में शिक्षा का उजाला फैला रहा है। इस एक्सक्लूसिव बातचीत में Hello Kids के संस्थापक बताते हैं कि कैसे उन्होंने नो-रॉयल्टी फ्रेंचाइज़ी मॉडल के ज़रिए छोटे उद्यमियों को सशक्त किया, किन चुनौतियों का सामना किया और आने वाले वर्षों में भारत के एजुकेशन सेक्टर को लेकर उनकी क्या योजनाएं हैं।
1. आपको Hello Kids शुरू करने का विचार कैसे आया? इसके पीछे आपकी प्रेरणा क्या थी?
Hello Kids की शुरुआत 2005 में इस सोच के साथ की गई कि भारत में हर बच्चे को गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक शिक्षा मिलनी चाहिए, चाहे वह महानगर में हो या किसी छोटे कस्बे या गांव में। उस समय भारत में संगठित प्री-स्कूल शिक्षा की काफी कमी थी, और जो भी विकल्प थे, वे सिर्फ चुनिंदा शहरों तक सीमित थे। मेरी प्रेरणा यह थी कि हम एक ऐसा प्लेटफ़ॉर्म तैयार करें जो संरचित, मूल्य-संगत और बच्चों की समग्र विकास जरूरतों को पूरा करने वाला हो। हम चाहते थे कि छोटे शहरों और टियर 2/3 क्षेत्रों के बच्चे भी उस स्तर की शिक्षा पा सकें, जो बड़े शहरों में उपलब्ध है।
2. Hello Kids का ‘नो रॉयल्टी’ फ्रेंचाइज़ी मॉडल भारत में पहले किसी ने नहीं अपनाया था। आपने यह फैसला क्यों लिया और इससे आपको क्या फायदा हुआ?
हमारा मानना है कि शिक्षा कोई मौसमी या तात्कालिक व्यवसाय नहीं है, यह एक दीर्घकालिक सामाजिक उत्तरदायित्व है। जब हमने फ्रेंचाइज़िंग की शुरुआत की, तब यह देखा कि अधिकतर फ्रेंचाइज़ी मॉडल में रॉयल्टी फीस एक बड़ी बाधा बनती है, खासकर छोटे उद्यमियों के लिए। इसलिए हमने भारत में पहली बार ‘नो रॉयल्टी’ मॉडल शुरू किया। इसका मुख्य उद्देश्य था – उद्यमियों को आत्मनिर्भर बनाना, उनकी वित्तीय बाधाओं को कम करना और उन्हें स्थायी रूप से इस शिक्षा मिशन का हिस्सा बनाना। इस मॉडल की वजह से हमें पूरे भारत में तेज़ी से विस्तार करने में मदद मिली और आज हमारे पास 1,030+ केंद्र हैं।
3. जब आपने Hello Kids की शुरुआत की थी, तब सबसे बड़ी चुनौती क्या थी? और आपने उसे कैसे पार किया?
शुरुआत में सबसे बड़ी चुनौती थी – लोगों में प्रारंभिक शिक्षा को लेकर जागरूकता की कमी और छोटे शहरों में ब्रांडेड प्री-स्कूल को अपनाने में झिझक। इसके अलावा, अच्छी क्वालिटी के टीचर्स और इन्फ्रास्ट्रक्चर की उपलब्धता भी सीमित थी। हमने इस चुनौती को दूर करने के लिए लगातार प्रशिक्षण कार्यक्रम, स्थानीय भाषा में सामग्री और एक मजबूत समर्थन प्रणाली विकसित की। साथ ही, हमने खुद उद्यमियों के साथ लगातार संवाद बनाए रखा, ताकि वे न केवल एक प्री-स्कूल चला सकें, बल्कि एक सफल व्यवसायिक मॉडल भी खड़ा कर सकें।
4. आपने पूरे भारत में सैकड़ों Hello Kids सेंटर शुरू किए हैं। आप यह गुणवत्ता और एकरूपता (consistency) कैसे बनाए रखते हैं?
गुणवत्ता और एकरूपता बनाए रखना हमारे ब्रांड का मुख्य स्तंभ है। इसके लिए हम कई स्तरों पर काम करते हैं—सर्वप्रथम, हमारे पास एक सुसंगठित ट्रेनिंग प्रोग्राम है, जिसमें शिक्षकों और सहायकों दोनों को नियमित रूप से प्रशिक्षित किया जाता है। दूसरा, हम एक टेक-इनेबल्ड प्रणाली (ERP) का उपयोग करते हैं, जिससे हर केंद्र की निगरानी और संचालन एक ही मानक पर होता है। तीसरा, हमारा पाठ्यक्रम (curriculum) लगातार विशेषज्ञों की मदद से अपडेट किया जाता है और इसमें AI आधारित, गेमिफाइड और सेंसर इंटरेक्टिव टूल्स का उपयोग होता है, जिससे बच्चों को स्क्रीन-फ्री और प्रभावी लर्निंग अनुभव मिलता है।
5. आपकी नजर में आने वाले 5 सालों में प्री-स्कूल एजुकेशन का भविष्य क्या है? Hello Kids उसमें क्या भूमिका निभाएगा?
अगले 5 वर्षों में प्री-स्कूल एजुकेशन और भी अधिक संगठित, टेक्नोलॉजी-सक्षम और स्केलेबल बनने वाला है। सरकार की नई शिक्षा नीति ने भी शुरुआती शिक्षा को औपचारिक और अनिवार्य मान्यता दी है। Hello Kids का लक्ष्य है कि हम 2030 तक 2,000+ सेंटर्स तक विस्तार करें, खासकर उन क्षेत्रों में जहां प्री-स्कूल की मांग तेजी से बढ़ रही है—जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के प्रमुख टियर 2/3 शहर। Hello Kids टेक्नोलॉजी, प्रशिक्षण, और मजबूत फ्रेंचाइज़ी सपोर्ट के जरिये इन क्षेत्रों में गुणवत्ता और पहुंच सुनिश्चित करेगा।